Uttarakhand Traditional Festival Selku

प्राकृतिक धरोहरों से समृद्ध (Selku) हिमालय राज्य उत्तराखंड में कई ऐसे पारंपरिक पर्व है जो कि सीधे तौर से प्रकृति से जुड़े हुए हैं। ऐसा ही एक पर्व उच्च हिमालय क्षेत्र में मौजूद दयारा बुग्याल क्षेत्र में मनाया जाता है जिसका नाम है “सेलकू पर्व”।

 Uttarakhand Traditional Festival “Selku”

 
ऊंचे हिमालय बुग्यालों में मौजूद रंग बिरंगे अलग अलग प्रजातियों के फूल अब अगले 10- 15 दिन के भीतर सर्दियों के दस्तक देते ही शुष्क होकर सूखना शुरू हो जाएंगे। इस मौके पर उत्तरकाशी जिले के टकनौर और नाल्ड-कठूड़ में हरियाली और सुंदर फूलों के सूख जाने और लंबी सूखी सर्दियों के स्वागत में स्थानीय लोगों द्वारा सूखते फूलों को विदाई देते हुए यह सेलकू पर्व मनाया जाता है।

प्रकृति का अभिनंदन जताता यह त्योहार | Uttarakhand Traditional Festival “Selku”

Uttarakhand Traditional Festival Selku

 

सेलकू पर्व के मौके पर ऊंचे बुग्याल में पूरी रात भर से चुनकर लाए गए फूलों को एक बड़े चादरनुमा स्वच्छ पूजा वाले कपड़े के ऊपर बिछाया जाता। अगले दिन सुबह भोर होने पर सभी ग्रामीण इस चादर के चारों तरफ पारंपरिक लोक नृत्यों का आयोजन से प्रकृति का अभिनंदन करते हैं।  इस पूरी प्रक्रिया का सम्मान करते हुए यहां रहने वाले पर्वतीय लोग इन फूलों के सूखने से पहले इन्हें तोड़कर गांव के आराध्य देव को अर्पित करते हैं।

ईष्ट देवता को फूल किये जाते है अर्पित | Uttarakhand Traditional Festival “Selku”

Uttarakhand Traditional Festival Selku

 

इस पर्व को सेलकु कहा जाता है तो वहीं ‘सेलकू’ शब्द का अर्थ है ‘सोएगा कौन’ पूरी रात भर होने वाले इस उत्सव में दूर दराज के ग्रामीणों के साथ ही गांव से अन्य गांवों में ब्याही बेटियां भी मायके पहुंचती है। पूरे रात भर के इस जश्न का समापन अगले दिन होता है जब गांव के ईष्ट आराध्य देवता अवतरित होकर धरधार कुल्हाड़ियों फरसे के ऊपर चलते हुए ग्रामीणों की समस्या का निदान बताता है। इस मौके पर जाती हुई हरियाली और एक लंबी सूखी सर्दियों का अभिनंदन किया जाता है। सेलकू नाम से लोकप्रिय यह पर्व उत्तरकाशी के टकनौर और नाल्ड- कठूड के एक दर्जन से ज्यादा गांवों में मनाया जाता है। इस क्षेत्र के सबसे पुराने इन गांवों में पिछली कई सदियों से पारंपरिक तौर पर हरियाली को इस तरह अलविदा कहने की परम्परा रही है।
 

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