उत्तराखंड चमोली में आयी भीषण आपदा को लेकर हमने अपनी पिछली स्टोरी में आपको हादसे के पीछे के वैज्ञानिक कारण बताये थे जिसमे इसरो ने कुछ तस्वीरों से इसकी पुष्टि की थी और बाद में खुद सीएम त्रिवेंद्र रावत ने भी अपने बयान में इसकी पुष्टि की। लेकिन यह कैसे सम्भव हुआ कि हादसे के वक्त ही वंहा की तस्वीरें ले ली गयी..? यह सब अंतरराष्ट्रीय स्पेस समझौते से जुड़े एक विशेष नियम के तहत ही सम्भव हुआ है। क्या है वह नियम हम आपको बताते हैं।
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हादसे के बाद वैज्ञानिक भी जुट गए थे अपने काम में।
चमोली हादसे के बाद जंहा एक तरफ प्रदेश सरकार का पूरा तंत्र बचाव और राहत कार्य मे जुट गया था तो वहीं दूसरी तरफ वैज्ञानकों की टीम भी इस घटना के तकनीकी पहलुओ को समंझने के लिए जानकारियां जुटाने में लग गई। आपदा के फौरन बाद उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के वैज्ञानिकों ने केंद्र सरकार में इसरो को अंतरराष्ट्रीय चार्टर जारी करने के लिए आवेदन किया जिसके बाद घटना की गंभीरता और सवेंदनशीलता को देखते हुए इसरो द्वारा इंटरनेशनल चार्टर जारी किया गया और उसके बाद आपदा का खुलासा हो पाया।
क्या होता है इंटरनेशनल चार्टर International charter for satellite.
जब भी पृथ्वी के किसी हिस्से यानी विश्व के किसी भी देश मे कहीं पर कोई आपदा आती तो इन परिस्थितियों से निपटने के लिए या कहें कि आपदा प्रबंधन में स्पेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने के लिए सभी देशों द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय सन्धि की गई है। जिसमे स्पेस के इस्तमालों और सेटेलाईट के माध्यम से डेटा शेयर करने की बाध्यता रखी गयी है। दरसल हमारे स्पेस में हर वक्त कई देशों की सेटेलाईट भृमण कर रही है जो हर पल पृथ्वी के किसी ना किसी हिस्से पर नजर बनाए होती है। सेटेलाईट द्वारा उस हिस्से की तस्वीरों के साथ साथ तमाम तरह से डेटा को संग्रहित करने का काम निरंतर किया जाता रहता है। आपदा वाली स्थिति में जिस भी देश मे आपदा आती है उस देश की केंद्रीय स्पेस ऑर्गनाइजेशन द्वारा अंतराष्ट्रीय चार्टर जारी किया जाता है जिसके बाद आपदा वाले उस विशेष हिस्से से उस वक्त गुजर रही सभी सेटेलाईट की डिटेल्स तत्काल मिल जाती तो वहीं अंतराष्ट्रीय चार्टर सन्धि के मुताबिक आपदा वाले हिस्से से गुजर रही स्पेस सेटेलाईट को उस देश के साथ डेटा शेयरिंग की बाध्यता होती है। इसी प्रक्रिया के तहत 7 फरवरी 2021 को उत्तराखंड के चमोली में आई आपदा के बाद इसरो द्वारा चार्टर जारी किया गया जिसके बाद सामने आया कि हादसे के वक्त अमेरिका की एक प्राइवेट स्पेस एजेंसी की सेटेलाईट उस हिस्से से गुजर रही थी। (इंटरनेशनल चार्टर की विकिपीडिया पर जानकारी लें)👉 International Charter
अमेरिका की Planet Labs सेटेलाइट गुजर रही थी हादसे के ऊपर से।
इसरो द्वारा जारी किए गए इंटरनेशनल चार्टर के बाद जानकारी मिली कि 7 फरवरी को 10 बजे उत्तराखंड चमोली जिले के जोशीमठ में उच्च हिमालयी क्षेत्र में आई भीषण आपदा के वक्त वंहा से एक अमेरिकन प्राईवेट स्पेस एजेंसी की सेटेलाईट गुजरी थी। इस प्राइवेट स्पेस एजेंसी का नाम “Planet Labs” है, यह अमेरिकी स्पेस एजेंसी सेन फ्रांसिस्को, केलिफोर्निया बेस्ड है। इस प्राइवेट स्पेस एजेंसी का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की तस्वीरों के संग्रह के साथ साथ धरती के छोटे हिस्सो में भी आये बारीक से बारीक बदलाव को देखना और उस पर डेटा कलेक्ट करना है। इसके अलावा यह स्पेस एजेंसी हर दिन धरती की तस्वीरों का भी संग्रह करती है। (विकिपीडिया पर पढ़े) 👇 https://en.m.wikipedia.org/wiki/Planet_Labs
जितनी बर्फ जमा थी सारी निकल गयी, अब खतरा नही।
International charter for satellite बाध्यता के चलते अमेरिकी सेटेलाईट कम्पनी “Planet lebs” ने बिना देरी के इसरो और देहरादून स्थित IIRS को 7 फरवरी 2021 को उत्तराखंड के चमोली जिले में ऊपर पहाड़ों पर हुए पूरे घटना क्रम की तस्वीरें उपलब्ध करवाई जिसके बाद मिले डेटा से शोधकर्ताओं को आपदा की वास्तविक वस्तुस्थिती की जानकारी मिली और जिस हादसे को अब तक ग्लेशियर टूटने से हुआ हादसा माना जा रहा था उसकी हकीकत यह थी कि पिछली 3 फरवरी से 5 फरवरी तक हुई बर्फबारी इस हादसे के लिए जिम्मेदार थी। सेटेलाईट से मिली तस्वीरों और डेटा से स्पष्ट हुआ कि जोशीमठ उच्च हिमालयी क्षेत्र में बसे रैणी गांव के ऊपर नंदादेवी की खड़ी पहाड़ियों पर पिछले 3, 4 और 5 फरवरी को हुई ताजा बर्फबारी काफी बड़ी मात्रा में जमा हो गयी और जब 6 फरवरी को मौसम साफ हुआ तो ताजा बर्फ का यह बड़ा हिस्सा एक साथ नीचे फिसल गया। यह बर्फ का हिस्सा केवल बर्फ ही नही पहाड़ी पर मौजूद मिट्टी, पत्थर, चट्टान और मलवा भी अपने साथ लेकर बहा। सेटेलाईट इमेज से मिली जानकारी के अनुसार विशेषज्ञों का कहना है कि जितनी भी ताजा बर्फ थी वह सब एक साथ एक झटके में निकल चुकी है और अब कोई भी ऐसा ताजा बर्फ का हिस्सा वंहा पर बाकी नही है जो कि एक राहत की खबर है।