उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी के मास कम्युनिकेशन के HOD डॉ. राकेश रयाल (Dr Rakesh Rayal) विश्वविद्यालय से उत्तराखंड की पत्रकारिता को धार देने के साथ साथ अपने गीतों के माध्यम से भी पहाड़ की संस्कृति, सभ्यता और समस्या को उजागर करने में लगे हैं।
Dr Rakesh Rayal, rich in various talent
उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी में मास कम्युनिकेशन के विभागाध्यक्ष डॉ राकेश रयाल एक तरफ जंहा विश्विद्यालय में लगातार अपनी सेवाएं देकर उत्तराखंड की पत्रकारिता को एक नई धार देने का काम कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ वह अपने गीतों के माध्यम से एक अलख जलाने का भी काम कर रहे हैं। राकेश रयाल आपके गीतों के माध्यम से उत्तराखंड के कल्चर, यंहा के राजनीतिक परिक्षेत्र और लोक समाज के विषयों पर गीत लिखते हैं और इसका खूबसूरत चित्रण भी वह अपने यूट्यूब चैनल पर डालते हैं। लोक गीतों के साथ जिन विषयों को डॉ रयाल बड़ी बेबाकी से उठाते हैं उसमें लोगों का भी अपार समर्थन देखने को मिलता है।
“जागि जावा” प्रसूति भू-कानून पर एक बड़ा सन्देश
https://youtu.be/F_pM2RZwNCI
शिक्षक और लोक गायक डॉ राकेश रयाल द्वारा जागि जावा प्रसूति आज के परिपेक्ष्य में उत्तराखंड के जन मानस के लिए एक बड़ा सन्देश है जिसमें आंदोलन से हासिल किए राज्य उत्तराखंड में कई ऐसे विषय हैं जो हमारे सामने पहाड़ बनकर खड़े है। डॉ रयाल ने इस प्रस्तुति में यह भी बताया है कि कैसे पहाड़ के पहाड़ जैसे जीवन की कायापलट के उत्तराखंड राज्य का सपना देखा गया था लेकिन आज वो किस दिशा में अग्रसर है। डॉ रयाल की जागि जावा प्रस्तुति में दिखाया गया है कि कैसे उत्तराखंड के भू कानून से खिलवाड़ किया गया और अब हमें भू कानून की सख्त जरूरत है ये सन्देश देने में राकेश रयाल की जागि जावा प्रस्तुति कामयाब साबित हुई है।
उत्तराखंड की संस्कृति और स्थानीय संस्कारो पर भी पकड़
https://youtu.be/hHoidBe5frU
डॉ राकेश रयाल की इसके अलावा अन्य कई प्रस्तुतियां उनके यूट्यूब चैनल “आरसी म्यूसिक एंड एंटेटरमेंट” पर डाली गई है। ऐसी एक प्रस्तुति है “एगे बग्वाल” । इस प्रस्तुति में उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकपर्व “बग्वाल” या फिर बूढ़ी दीपावली का सुंदर प्रस्तुतिकरण है। इस प्रसूति में बग्वाल के तौर तरीकों के साथ साथ गांवों में इसे कैसे मनाया जाता है और लोगों का क्या भाव रहता है उसे भी बखूबी उकेरा गया है।