dehradun railway station से चलने वाली लाहौरी एक्सप्रेस का बेहद रोचक इतिहास है। यह पैसेंजर रेलगाड़ी बंटवारे से पहले तक देहरादून से सीधी लाहौर तक चलती थी और इसी रास्ते वापिस भी आती थी। विभाजन के बाद यह रेलवे पैसेंजर गाड़ी अमृतसर तक जाने लगी और अमृतसर से ही वापस आती है
dehradun railway station History of dehradun amritsar lahori express
देहरादून – लाहौरी एक्सप्रेस 1947 से पहले की ट्रेन
dehradun railway station के सम्बन्ध में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शीशपाल गुसाईं बताते हैं कि 1947 से पहले तत्कालीन पंजाब और सिंध के गुजरोवाला, लाहौर, क्वेटा, सरगोधा, मुल्तान के लोग इसी गाड़ी में हरिद्वार आते थे। इसे फूलवाली गाड़ी भी कहते थे। क्योंकि तत्कालीन पंजाब और सिंध के लोग इसी ट्रेन में अस्थियों को महान नदी गंगा में लाते थे। अस्थियां फूल से लकदक रहती थी। आस्तियों को हरिद्वार गंगा में विसर्जन किया जाता था।
इसी रेलगाड़ी से लाहौर से अनाज, धान भी आता था। फिर वह अनाज, धान धर्मशालाओ में बांटा जाता था। तत्कालीन पंजाब और सिंध के मुल्तान, सरगोधा , बन्नू बिरादरी की धर्मशालाएं आज भी हरिद्वार में हैं। इन धर्मशाला में वह अनाज बांटा जाता था। बन्नू बिरादरी का देहरादून में रेस कोर्स में एक बड़ा स्कूल भी है। एक बड़ा मैदान भी। यहाँ देहरादून की अब बड़ी शादियाँ होती हैं। मैं भी इस मैदान में एकाधिक बार गया हूँ।
बन्नू बिरादरी के पूर्वज भी इसी गाड़ी से आते- जाते थे। उत्तराखंड सहित देहरादून के काफी लोग बंटवारे से पहले लाहौर पढ़ने जाते थे। वह भी इसी गाड़ी से सफर करते थे। लाहौरी एक्सप्रेस का नंबर 143631 देहरादून – लाहौरी होता था. अभी भी कागजों में यही है। सातों दिन यह ट्रेन 19:05 पर देहरादून से अमृतसर के लिए चलती है। विभाजन से पहले यह आगे लाहौर तक जाती थी। ब्रिटिश फौज भी लैंसडाउन से रुड़की आती थीं फिर उसी गाडी में देहरादून – लाहौरी से लाहौर जाती थी। इसी गाड़ी से लाहौर से अमृतसर, अंतिम यात्री देहरादून का होता था। अब इस ट्रेन को चंडीगढ़ से जोड़ दिया गया है। यानी चढ़ीगढ़ से आया जाया करेगी।