महज दो शदक पहले बने उत्तराखंड राज्य में चार बार विधानसभा चुनाव हुए हैं और पांचवी विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। एसे में अगर राज्यस्थापना से लेकर अब तक उत्तराखंड में चुनाव लड़ने वाले पोलटिकल पार्टियों का मत प्रतिशत के अलावा जातिय समिकरण और पहाड़-मैदान का सियासी समिकरण क्या कहता है जानिए विस्तार में।
Uttarakhand vote share & Demography
आइए शुरु से शुरु करते हैं.. क्या है गढ़वाल और कुमाऊं का इतिहास
(Uttarakhand vote share) उत्तराखंड राज्य को दो भागों में बटा हुआ है जिसमें से एक गढ़वाल मंडल है और एक कुमाऊं मंडल है लेकिन इसका इतिहास बेहद रोचक है। इतिहासकार बताते हैं कि वर्ष 1790 में गोरखा साम्राज्य नेपाल से आगे बढ़कर उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र पर कब्जा करते गया और 1804 तक आते-आते उसने हिमाचल के कांगड़ा तक का हिस्सा अपने अधीन कर लिया जिसके बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने गोरखा साम्राज्य से लड़ाई लड़ते हुए गोरखा ओं को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और वर्ष 1815 में हुई सुगौली की संधि के बाद गोरखा साम्राज्य की सीमा नेपाल तक सीमित कर दी गई जिसके बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने कुमाऊ के उत्तराखंड में बहने वाली मंदाकिनी नदी के दाहिनी तरफ का हिस्सा अपने शासन में रखा और इस तरह से कुमाऊं के साथ-साथ गढ़वाल का यह हिस्सा ब्रिटिश गढ़वाल के रूप में जाने जाने लगा तो वही अलकनंदा नदी के बाई तरफ टोंस नदी तक का पूरा हिस्सा टिहरी नरेश को दे दिया गया और इस तरह से यह व्यवस्था देश की आजादी तक चलती रही और जब 1947 में देश आजाद हुआ तो उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा बना जिसमें गढ़वाल और कुमाऊं मंडल थे। कुमाऊं जिले की बात करें तो पहले कुमाऊं में आजादी के समय केवल 2 जिले थे अल्मोड़ा और नैनीताल तो वही 1960 में पिथौरागढ़ बागेश्वर और चंपावत जिले बनाए गए और बाद में उधम सिंह नगर भी कुमाऊं मंडल में जोड़ दिया गया।
उत्तराखंड की डेमोग्राफिक को जरा समझें, क्या है जातीय समिकरण
उत्तराखंड में जातिगत समीकरणों की बात करें तो पूरे प्रदेश भर में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पूरे प्रदेश में 14 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है जिनमें से 10 फीसदी केवल मैदान के 4 जिलों में और 4 फीसदी पहाड़ी जनपदों में निवास करती है। बताया जाता है कि उत्तराखंड के मैदानी इलाकों की तकरीबन 22 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 2011 के सेंसस के अनुसार अकेले देहरादून जिले में 2 लाख मुस्लिम आबादी है और पहाड़ी जिलाों में सबसे ज्यादा पौड़ी जिले में 22 हजार मुस्लिम आबादी है। विशेष रूप से कुमाऊं मंडल में पढ़ने वाले जिलों की बात करें तो पिथौरागढ़ में 6 हजारअल्मोड़ा में 7.5 हजार नैनीताल में 1.2 लाख, बागेश्वर में 1400 चंपावत में 8693 और उधम सिंह नगर जिले में 3.72 लाख मुस्लिम आबादी है। इसके अलावा अगर उत्तराखंड में हिंदू आबादी की बात करें तो हिंदू आबादी में से 60 फीसदी ठाकुर (राजपूत), 25 फ़ीसदी ब्राह्मण, 19 फीसदी अनुसूचित जाति और 3 फ़ीसदी से कम अनुसूचित जनजाति के लोग निवास करते हैं।
उत्तराखंड में किस पार्टी का कितना वोट शेयर
2002 के चुनाव
उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव 2002 में कांग्रेस जीत कर आई और कांग्रेस ने पूरे प्रदेश में 36 सीटें जीती थी जिनमें कुमाऊ की 29 सीटों में सबसे ज्यादा कांग्रेस को 15 सीटों पर जीत हासिल हुई तो भाजपा केवल 7 सीटें कुमाउं में जीत पाई। इसके अलावा यूकेडी ने 3 सीटें जीती और 2-2 सीटें निर्दलीय बीएसपी की झोली में गिरी। वर्ष 2002 में 36 सीटों से सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी का पूरे प्रदेश में वोट परसेंट 26.91% रहा था जबकि दूसरे नंबर पर 19 सीटों के साथ रहने वाली भाजपा का वोट परसेंट 25.45% था।
2007 के चुनाव
वर्ष 2007 में हुए उत्तराखंड के दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बढ़त बनाई थी और पूरे प्रदेश में भाजपा 34 सीटें जीत कर लाई थी जिनमें सरकार बनाने वाली भाजपा 34 सीटों में से 16 सीटें कुमाऊं से जीत कर लाई और दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस को कुमाऊं में केवल 10 सीटों पर जीत हासिल हुई। 2007 विधानसभा चुनाव की एक खास बात यह भी है कि यह चुनाव केवल 69 सीटों पर लड़ा गया क्योंकि (बाजपुर 59) विधानसभा पर चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के प्रत्याशी जनक राज शर्मा जोकि उधम सिंह नगर के जिला पंचायत भी रह चुके थे और कांग्रेस के बेहद प्रभावशाली नेता थे वह चुनाव प्रचार के दौरान एक सड़क दुर्घटना में दिवंगत हो गए और इसी पर चुनाव टल गए। इस तरह से 2007 विधानसभा चुनाव परिणाम में सरकार बनाने वाली भाजपा का वोट परसेंट 31.90% रहा और 21 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस का वोट परसेंटेज 29.59% रहा।
2012 के चुनाव
वर्ष 2012 में हुए तीसरे विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने भाजपा को मात दी और इस बार टक्कर कांटे की थी । कांग्रेस 32 सीटें जीतकर आई और भाजपा 31 सीटें जीतकर लाइक हालांकि यहां पर जीत कर आये बीएसपी के तीन और निर्दलीय तीन विधायकों की भूमिका बेहद अहम थी। 2012 में भाजपा भले ही कुमाऊं से 15 सीटें जीतकर लाई थी और कांग्रेस कुमाऊं में केवल 13 सीटें जीत पाई थी लेकिन लाल कुआं से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में एक सीट हरिश चंद्र दुर्गापाल ने भी कांग्रेस को समर्थन दिया। इस तरह से वर्ष 2012 में 32 सीटों के साथ सरकार बनाने वाली कांग्रेस का पूरे प्रदेश में वोट परसेंटेज 34.03% रहा और दूसरे नंबर पर 31 सीटों के साथ रहने वाली भाजपा का वोट परसेंट 33.13% था।
2017 के चुनाव
वर्ष 2017 में हुए चुनाव में भाजपा ने सारे रिकॉर्ड नेस्तनाबूद कर दिए और प्रचंड बहुमत के साथ 59 सीटें जीतकर उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई। इस दौरान मोदी लहर में विपक्षियों की जड़ें हिला दी। 59 सीट लाने वाली भाजपा को कुमाऊं के लोगों का भी खूब आशीर्वाद मिला। पिछले विधानसभा चुनाव कि मोदी लहर में भाजपा कुमाऊं में 23 सीटें जीतकर लाइ और कांग्रेस की झोली में केवल 5 सीटें ही गिरी और एक सीट निर्दलीय भीमताल से राम सिंह खेड़ा जीत कर आए। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत लाने वाली भाजपा का वोट परसेंट बढ़कर 46.51% हो गया तो वही 11 के आंकड़े पर सिमटी कांग्रेस का वोट परसेंट 33.49% हो गया।