उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के लिए हुए मतदान कि अगर तुलना पिछले विधानसभा चुनाव से की जाए तो काफी हद तक चौंकाने वाले आंकड़े सामने आते हैं।
Uttarakhand Election 2022 Polling statics
Uttarakhand Election 2022 उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव 2022 के लिए मतदान हो चुके हैं हालांकि मुख्य निर्वाचन कार्यालय द्वारा अभी भी प्रदीप के अलग-अलग इलाकों द्वारा मतदान को लेकर आंकड़ों को अपडेट किया जा रहा है। प्रदेश में मौजूद दुर्गम क्षेत्रों में हुई पोलिंग के आंकड़े जुटाने में लगातार निर्वाचन पिछले 24 से 48 घंटों से लगा हुआ है तो वहीं अब तक मिले आंकड़ों के अनुसार इन विधानसभा चुनाव में 64.29% मतदान हुआ है। तो वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में हुए मतदान के आंकड़ों की अगर बात करें तो आंकड़े कुछ इस तरह से बयां करते हैं।
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सबसे ज्यादा और सबसे कम मतदान वाले जिले।
इस बार विधानसभा चुनाव में हुए मतदान के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो सबसे ज्यादा हरिद्वार में 74.06% और उधम सिंह नगर में 71.45% मतदान हुआ और उत्तरकाशी जिले में भी 67.32% पोलिंग हुई है गिरीश साबुन। वहीं अगर न्यूनतम मत प्रतिशत की बात करें तो सबसे कम पहाड़ी जनपद अल्मोड़ा में 52.82% पौड़ी में 53.14% और टिहरी गढ़वाल में 55.57% मतदान हुआ है।
सबसे अधिक और सबसे कम मतदान वाली विधानसभाएं
सबसे अधिक मतदान वाली विधानसभाओं की बात करें तो हरिद्वार जिले की हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा में 81.25%, लक्सर विधानसभा में 79.01% ज्वालापुर विधानसभा में 78.90% मतदान हुआ। तो वही प्रदेश की वह विधानसभा दिन में सबसे कम वोटिंग हुई वह अल्मोड़ा जिले की सल्ट विधानसभा और पौड़ी गढ़वाल की चौबट्टाखाल और लैंसडाउन विधानसभा रही। सल्ट विधानसभा में 44%, चौबट्टाखाल में 44.25% और लैंसडाउन में 46.04% पोलिंग हुई।
कुछ खास बातें
पहाड़ी क्षेत्रों में मौजूद 34 में से 28 जारी की 82 फ़ीसदी पहाड़ी विधानसभाओं में वोट प्रतिशत हॉस्टल राज्य के वोट प्रतिशत 64.29% से कम रहा तो वहीं अगर देहरादून जिले की 4 विधानसभा जोकि देहरादून शहर की है मसूरी देहरादून कैंट राजपुर रोड और धर्मपुर यहां पर मत प्रतिशत 60 से नीचे रहा।
मतदान घटा या बड़ा, जिलावार
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राजनीतिक पंडित विधानसभा चुनाव 2022 में हुए इस मतदान को एक स्वस्थ मतदान बता रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ जय सिंह रावत का कहना है कि जनता में मतदान को लेकर देखी जा रही यह उत्सुकता कहीं न कहीं किसी एक बड़े बदलाव की ओर इशारा करती है साथ ही उन्होंने कहा कि यहां मतदान भाजपा के पक्ष में हो या फिर कांग्रेस के पक्ष में लेकिन लोगों द्वारा बढ़-चढ़कर मतदान में ली जा रही इस महत्वपूर्ण भागीदारी से इस बात को समझना बेहद आसान है कि लोगों के बीच कुछ ना कुछ फैक्टर काम कर रहा है वह सत्ता विरोधी लहर भी हो सकती है और सत्ता के पक्ष में भी कुछ हो सकता है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि पारंपरिक तौर से माना जाता है कि जब ज्यादा मतदान होता है तो यह सत्ता के विरोध में होता है लेकिन इस बार पिछले दो चुनावों से कम फ़ीसदी मतदान हुआ है हालांकि इसका परिणाम स्पष्ट रूप से 10 मार्च को सामने आ पाएगा।
जय सिंह रावत राजनीतिक विशेषज्ञ