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चमोली जिले के उच्च हिमालई क्षेत्र में ग्लेशियर टूटने से आई आपदा को लेकर इसरो ने सैटेलाइट इमेज जारी की है। जिसके बाद चमोली में आया आई आपदा के कारणों का कुछ हद तक पता लग पाया है।

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चमोली में आई दैवीय आपदा मैं अभी भी बचाव और राहत का कार्य चल रहा है। अब तक 153 लापता लोगों में से 18 लोगों का शव बरामद किया जा चुका है तो वहीं लापता हुए लोगों में तपोवन एनटीपीसी प्रोजेक्ट की टनल में फंसे 35 लोगों को बचाने का काम लगातार जारी है।

ग्लेशियर टूटने से नही, ताजा बर्फ जमने से आई आपदा।

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चमोली में आई इस भीषण आपदा के कारणों को लेकर सभी तकनीकी पहलुओं पर कल से ही काम शुरू हो गया था। आपदा के कारणों का पता लगाने के लिए उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा केंद्र सरकार में इसरो को चार्टर लागू करने के लिए अनुरोध किया गया था जिसके बाद इसरो द्वारा अंतराष्ट्रीय चार्टर लागू किया गया। (अन्तराष्ट्रीय चार्टर क्या होता है हमारी अगली स्टोरी में पढ़ें) अंतराष्ट्रीय चार्टर लागू करने के बाद इसरो को अमेरिकन प्राइवेट सेटेलाइट कम्पनी से मिली तस्वीरों से पता लगा कि चमोली धौली गंगा नदी के ओरिजन नंदा देवी के पहाड़ों पर पिछले 2 फरवरी से 5 फरवरी तक हुई भारी बर्फ बारी के चलते पहाड़ो पर भारी संख्या में बर्फ जमा हो गयी थी और जब 6 फरवरी को मौसम खुला तो बर्फ का जामा ये पूरा हिस्सा नीचे खिसक गया जो कि सेटेलाइट इमेज में साफ दिखाई दे रहा है।

पढ़े 👉 अन्तराष्ट्रीय चार्टर, चमोली हादसे के वक्त वंहा से अमेरिकी सेटेलाइट गुजरा था।

इसरो ने जारी की सेटेलाइट इमेज

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इसरो द्वारा जारी की गई सैटलाइट इमेज में साफ तौर से देखा जा सकता है कि हादसे के 1 दिन पहले ली गई तस्वीर में धौलीगंगा का ऊपरी इलाका जो की ताजा बर्फ से पूरी तरह से ढका हुआ है तो वहीं दूसरी तस्वीर में हादसे के वक्त यह पूरा फिसल कर नीचे की ओर बह कर चला गया। विशेषज्ञ बताते हैं कि इस पूरे हिस्से में पिछले 2 फरवरी से 5 फरवरी तक हुई बर्फबारी की ताजा बर्फ जमी हुई थी जो कि 6 तारीख को मौसम साफ होने के बाद पूरी की पूरी नीचे खिसक गई। यही नहीं सैटलाइट इमेज में यह भी देखा जा सकता है कि अब ताजा बर्फबारी का कोई भी जमाव घाटी में मौजूद नहीं है जिससे कि दोबारा इस तरह की घटना का खतरा नहीं है।