प्रदेश के अन्य शहरों में (Risk Assessment In Uttarakhand) केयरिंग कैपेसिटी और भार क्षमता को लेकर किए जा रहे सर्वे का काम बेहद कछुआ गति से चल रहा है। अब तक केवल नैनीताल शहर में ही काम शुरू हुआ है |
Risk Assessment In Uttarakhand
हिमालय की राज्य उत्तराखंड में आपदा एक ऐसा विषय है जो कि प्रदेश के विकास के साथ समानांतर चलता है। ऐसे में जोशीमठ आपदा के बाद प्रदेश भर के खासतौर से उच्च हिमालय क्षेत्र में बसे ऐसे सभी शहरों को लेकर के सवाल खड़े होने लगे थे जहां पर विकास की अंधाधुन दौड़ने कंक्रीट के जंगल में छोटे-छोटे हिल स्टेशन को तब्दील कर दिया है।
परिस्थितियों के हिसाब से जोशीमठ इसका उदाहरण है तो वही जोशीमठ के अलावा उत्तराखंड के उच्च हिमालय बेल्ट में बसे ऐसे तमाम शहर हैं जहां पर राज्य गठन के बाद अव्यवस्थित विकास ने ऐसे अपनी इतनी मजबूत कर ली हैं कि आज प्रकृति की छोटी सी गतिविधि भी एक बड़े जोखिम का रूप ले लेती है।
कितना है शहरों का रिस्क एसेसमेंट | Risk Assessment In Uttarakhand
जोशीमठ के बाद लगातार उत्तराखंड के शहरों में हो रहे इस तरह के विकास को लेकर के सवाल उठे तो सरकार द्वारा तत्काल फैसला लिया गया कि जोशीमठ जैसा वाकिया कहीं और ना घटे इसके लिए प्रदेश के सभी शहरों का रिस्क एसेसमेंट करवाया जाए यानी कि शहर की कैपेसिटी कितनी है वहां पर किस तरह से निर्माण कार्य किया जा सकता है इसको लेकर के एक विस्तृत गाइडलाइन तैयार की जाए। जिसको लेकर आपदा प्रबंधन विभाग और शहरी विकास विभाग मिलकर उत्तराखंड के तमाम जोखिम भरे शहरों का सर्वे करने के लिए निर्देश दिए गए थे और इसे कैबिनेट से भी पास करवाया गया था।
पर्वतीय शहरों की होगी केयरिंग और बीयरिंग कैपेसिटी तय | Risk Assessment In Uttarakhand
आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि सरकार की कैबिनेट का यह फैसला था कि उत्तराखंड के जितने भी शहर पर्वतीय इलाकों में है उन सभी का केयरिंग कैपेसिटी और बीयरिंग कैपेसिटी दोनों निर्धारित की जाए। बीयरिंग कैपेसिटी यानी कि उस शहर की धरती कि भार क्षमता यानी कि उस शहर की धरती अपने ऊपर कितना भारी निर्माण सहन कर सकती है। जैसे कि हाल ही में जोशीमठ की बीयरिंग कैपेसिटी निकाली गई है जोकि 10 टन आई है यानी कि यहां पर हल्के मैट्रियल का केवल 1 मंजिला निर्माण किया जा सकता है।
शहरों की भार क्षमता पता लगाएगा आपदा प्रबंधन | Risk Assessment In Uttarakhand
इसी तरह से सारे शहरों कि भार क्षमता निकालने के निर्देश दिए गए थे और इसी के अनुसार हर शहर मैं निर्माण कार्य की गाइडलाइन जारी होगी और इसी के अनुसार पर्वतीय इलाकों में विकास का रोडमैप तैयार किया जाएगा। इसी तरह से कैरिंग कैपेसिटी यानी कि उस शहर में मौजूद संसाधनों के आधार पर उस शहर में कितने लोग रह सकते हैं या फिर कितने लोग आवाजाही कर सकते हैं यह भी कैरिंग कैपेसिटी मैं निर्धारित किया जाना था। आपदा सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि शहरों की बार क्षमता निकालने के लिए उत्तराखंड आपदा प्रबंधन के लैंडस्लाइड मिटिगेशन सेंटर (LMC) को जिम्मेदारी दी गई है तो वही शहरों की कैरिंग कैपेसिटी के लिए शहरी विकास विभाग को जिम्मेदारी दी गई है।
लैंडस्लाइड मीटिगेशन सेंटर डायरेक्टर ने दी जानकारी | Risk Assessment In Uttarakhand
उत्तराखंड के सभी पर्वतीय शहरों में बियरिंग कैपेसिटी और केयरिंग कैपेसिटी पर कितना काम हुआ है इसको लेकर के हमने आपदा प्रबंधन विभाग के लैंडस्लाइड मीटिंगेशन सेंटर के डायरेक्टर शांतनु सरकार से इस संबंध में हुई प्रगति के बारे में जानकारी ली जिस पर उन्होंने बताया कि अभी इस संबंध में ज्यादा कुछ कार्य नहीं हो पाया है उन्होंने बताया कि अभी केवल नैनीताल शहर के कुछ इलाकों में इन्वेस्टिगेशन चल रहा है जिसमें कि रिस्क मैनेजमेंट को लेकर के सर्वे किया जा रहा है।
कर्णप्रयाग में किया जायेगा मैनेजमेंट सर्वे | Risk Assessment In Uttarakhand
नैनीताल के बाद कर्णप्रयाग शहर के सर्वे को लेकर के विचार किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ पर्वतीय शहरों की केयरिंग कैपेसिटी को लेकर शहरी विकास विभाग से भी कुछ बेहतर जवाब नहीं आया। विभाग के उच्च अधिकारियों को इस संबंध में किसी तरह की कोई जानकारी नहीं है। अभी इस संबंध में शहरी विकास विभाग द्वारा कोई खास कार्यवाही नहीं की गई है।