16 जून 2013 उत्तराखंड के इतिहास में एक ऐसी तारीख के रूप में दर्ज हो चुकी है जो कि आगे कई सौ सालों तक अलग–अलग परिपेक्ष में याद की जाएगी। आज 16 जून को केदारनाथ आपदा को 10 वर्ष बीत गए। इन 10 सालों में हमने खुद को मजबूत किया है |
after ten years Kedarnath disaster
2013 की केदारनाथ आपदा को शुक्रवार 16 जून 2023 को 10 साल पूरे हो गए हैं। इन 10 सालों में हमने खुद को मजबूत किया है। आज केदार धाम अपने पुराने अवतार में आगया है। धाम में यात्रा के लिए श्रद्धालू बड़–चढ़ कर पहुंच रहे हैं।
क्या थी केदारनाथ आपदा ? after ten years Kedarnath disaster
वर्ष 2013 में उत्तराखंड में मानसून ने समय से कुछ पहले दस्तक दे दी थी। जून के पहले हफ्ते से ही प्रदेश में बारिश का माहौल बनने लगा था और जून महीने का दूसरा हफ्ता आते –आते मानसून ने पूरी रफ्तार पकड़ ली थी। मंजर ये था कि पूरे प्रदेश भर में लगातार बारिश हो रही थी। 15 जून से लगातार हो रही बारिश 17 जून की सुबह जारी रही जिसको देखते हुए छोटे-मोटे नुकसान की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन केदारनाथ से एक अधिकारी द्वारा भेजी गई एक तस्वीर ने सब की चिंताएं बढ़ा दी। दरअसल सूचना आई थी कि केदारनाथ में भारी बारिश हुई है जिसके चलते वहां पर कुछ नुकसान हुआ है, लेकिन जब 17 की सुबह मौसम छटा तो जो मंजर सामने था वह सच में दिल को झकझोर देने वाला था। दरअसल एक भरे पूरे केदारनाथ धाम, जहां पूरा केदारनाथ धाम यात्रा सीजन की पिक की वजह से यात्रियों से खचाखच भरा हुआ था वह अब तकरीबन 90 फ़ीसदी मलबे में तब्दील हो गया था। आधिकारिक आंकड़े चाहे कुछ भी कहे लेकिन प्रत्येक दर्शी लोग बताते हैं कि उस दिन 10 हजार से अधिक लोग केदारनाथ धाम में मौजूद थे जिनमें से कई हजारों लोगों का आज तक अता पता नहीं चला है और ना ही उसके कहीं रिकॉर्ड है। 2013 की आपदा के बाद कई सालों तक उस 16 जून को केदारनाथ यात्रा पर आए यात्रियों के परिजनों द्वारा अपने परिजनों को ढूंढने के लिए उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में देखा गया जो कि बताता है कि 16 जून 2013 का वह दिन किस तरह से कई जिंदगियों को अपने साथ काल के ग्रास में ले गया।
क्यों आई थी 16 जून 2013 की आपदा | after ten years Kedarnath disaster
16 जून 2013 कि आपदा के प्रत्येक दर्शी बताते हैं कि लगातार हो रही बरसात की वजह से सभी नदी नाले उफान पर थे जोकि सामान्य सी बात थी लेकिन 15 जून की रात से लगातार हो रही बारिश के चलते केदारनाथ धाम के दोनों तरफ बहने वाली मंदाकिनी और सरस्वती नदी में पानी पहले से ही बड़ा हुआ था लेकिन 16 जून 2013 की सुबह 4:00 बजे अचानक इन दोनों नदियों में बहुत ज्यादा पानी बढ़ गया और कुछ ही सेकंड बाद केदारनाथ धाम के पीछे से पूरा मलवा केदारनाथ धाम को लीन करते हुए आगे बढ़ा। वही इसी दौरान एक बड़ी चट्टान केदारनाथ मुख्य मंदिर के पीछे आकर रुक गई जिसकी वजह से मंदिर को बेहद कम नुकसान हुआ लेकिन मंदिर के आसपास मौजूद सभी बसावट वाली जगह बुरी तरह से तहस-नहस हो गई और इस तरह से यह जलजला आगे बढ़ता गया और रामबाड़ा तक रास्ते में पढ़ने वाले हर एक कस्बे को अपने साथ लेता चला गया। आपदा के कई दिनों बाद जांच दलों द्वारा यह पाया गया कि 14 जून से लगातार हो रही बरसात की वजह से केदारनाथ धाम के ऊपर चोराबारी झील में एक ग्लेशियर टूट कर आ गया था जिसकी वजह से चोराबारी झील का एक हिस्सा टूट गया और पूरी झील का पानी केदारनाथ वैली में अचानक से एक साथ बाढ़ के रूप में आ गया।
तत्कालीन मुख्यमंत्री को देना पड़ा था इस्तीफा | after ten years Kedarnath disaster
केदारनाथ आपदा का मंजर बेहद भयावह था। आपदा का स्वरूप इतना वृहद था की इस आपदा के सामने शासन– प्रशासन ने घुटने टेक दिए। आपदा में राहत और बचाव कार्यों के लिए सेना को आगे आना पड़ा और सेना ने देश में पहली दफा इतना बड़ा राहत अभियान चलाया। आपदा के दौरान कई सवाल सरकार पर खड़े किए गए। उत्तराखंड पूरी तरह से टूट चुका था क्योंकि हजारों की संख्या में लोगों की जानें गई थी और यह पूरे देश भर से आए हुए श्रद्धालुओं को प्रभावित करने वाली घटना थी लिहाजा इस घटना पर सरकारी सिस्टम भी पूरी तरह से कॉलेप्स हो गया। विधानसभा में सरकार से सवाल पूछे जाने लगे, तमाम चरमराई हुई व्यवस्थाओं को लेकर के सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाने लगा और आखिरकार तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में मौजूद विजय बहुगुणा को इस्तीफा देना पड़ा और इस घटना के बाद हरीश रावत को उस समय की कांग्रेस सरकार ने मुख्यमंत्री की कमान सौंपी।
केदारनाथ पुनर्निर्माण में पीएम मोदी की रही अहम भूमिका | after ten years Kedarnath disaster
2013 की आपदा के बाद उत्तराखंड पूरी तरह से टूट चुका था। प्रदेश की रीड पर्यटन व्यवसाय अब एक तरह से खत्म हो चुका था। देश और दुनिया में केवल उत्तराखंड त्रासदी की खबरें छाई हुई थी ऐसे में पूरी तरह से नेस्तनाबूद हो चुकी उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था और यहां के पर्यटन व्यवसाय को एक बार पटरी पर लाने के लिए उस समय की कांग्रेस सरकार द्वारा भी काफी प्रयास किए गए लेकिन इन प्रयासों में रफ्तार तब आई जब 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का केदारनाथ से विशेष लगाव, केदारनाथ में पुनर्निर्माण और टूट चुके उत्तराखंड को वापस पटरी पर लाने के लिए बेहद कारगर साबित हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपने सुपरविजन में केदारनाथ पुनर्निर्माण शुरू करवाया और खुद समय-समय पर केदारनाथ में पुनर्निर्माण के कार्यों का जायजा लिया। कार्य तेज गति से हो इसके लिए अधिकारी कार्यदाई संस्था और उत्तराखंड सरकार को लगातार पीएमओ द्वारा समय-समय पर समीक्षा करवाई गई यही वजह है कि 2013 में पूरी तरह से टूट चुके उत्तराखंड के पर्यटन व्यवसाय में एक बार फिर से इजाफा हुआ और वर्ष 2019 आते-आते एक बार फिर से केदारनाथ धाम अपनी वापस उसी रंगत में आने लगा जिसके लिए वह जाना जाता था। आलम यह है कि आज केदारनाथ धाम में पहले से कहीं ज्यादा व्यवस्थाएं विकसित की गई है और केदारनाथ धाम में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में भी काफी इजाफा हुआ है।
प्रकृति को नजरंदाज करना ना पड़ जाए भारी | after ten years Kedarnath disaster
भले ही आज उत्तराखंड के चारों धामों को लेकर के केंद्र और राज्य सरकारें बेहद गंभीर है और केदारनाथ पुनर्निर्माण के बाद बद्रीनाथ धाम में भी पुनर्निर्माण के कार्य करवाए जा रहे हैं। उत्तराखंड के सभी तीर्थ स्थलों पर केयरिंग कैपेसिटी पुनर्निर्माण इत्यादि को लेकर के सरकार गंभीर है। लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो कि सरकारों द्वारा लगातार किए जा रहे उच्च हिमालय क्षेत्र में निर्माण कार्यों को लेकर के आगाह कर रहा है। प्रकृति के साथ लगातार होने वाली छेड़छाड़ और उच्च हिमालई क्षेत्रों में होने वाले विकास कार्यों को लेकर के आगाह करने वाला समाज का यह वर्ग केदारनाथ में आई 2013 की आपदा कि बड़ी वजह बताते हैं। कई पर्यावरण विशेषज्ञों का आज भी कहना है कि पहाड़ पर लगातार हो रहे विकास जिसमें की पेड़ों को काटकर कंक्रीट के जंगल को बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे 13 की आपदा के अलावा और कुछ उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। उच्च हिमालई क्षेत्रों में होने वाली इंसानी गतिविधियों से निश्चित तौर से दैवीय आपदाओं का संबंध है, ऐसा कई शोधकर्ताओं द्वारा भी कहा गया है। लिहाजा सरकारों को भी शोध एजेंसियों द्वारा रिपोर्ट समय-समय पर भेजी जाती है ऐसे में सरकार के सामने विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच में संतुलन बनाना हमेशा ही एक बड़ी चुनौती रही है।